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BBC टाइम्स इन उज्जैन 25 अक्टूबर।

मंदसौर. दशहरा पर्व पर जहा पूरे देश में बुराई के प्रतीक रावण के पुतले जलाए जाते हैं., लेकिन एक जगह ऐसी है जहां रावण का पुतला नहीं जलाया जाता बल्कि रावण की प्रतिमा की पूजा की जाती है और रावण को जमाई यानी कि दामाद भी माना जाता है. मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले का खानपूरा (Khanpura) क्षेत्र में रावण की पूजा धूमधाम से की जाती है. दशहरे पर हाथों में आरती की थाली लिए, ढोल नगाड़े बजाते हुए रावण की प्रतिमा की पूजा हर साल यहां होती है. दशहरा पर्व पर सुबह से लोग पूजा करने आते हैं और रावण की आरती उतारते हैं.

दरअसल मंदसौर में नामदेव समाज पिछले 300 से ज्यादा वर्षों से दशानन रावण की पूजा करता आ रहा है. नामदेव समाज रावण की पत्नी मंदोदरी को अपनी बेटी मानता है. इस नाते वो रावण को अपना जमाई मानते है और पूजा भी करते हैं. मंदसौर में नामदेव छिपा समाज के अध्यक्ष राजेश मेडतवाल बताते हैं कि वर्षों से समाज के लोग रावण की पूजा करते आ रहे हैं. स्थानीय कर्मकांडी विद्वान श्याम पंड्या का कहना है कि एक मान्यता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी नामदेव परिवार की ही बेटी थीं, इसलिए रावण को दामाद की तरह सम्मान दिया जाता है और उसकी पूजा भी की जाती है.

घूंघट में रहती है महिलाएं
नामदेव समाज के तनिष्क बघेरवाल का कहना है कि यहां पर महिलाएं दशानन रावण को जमाई मानती हैं. इस कारण घूंघट निकाल कर ही रावण की प्रतिमा के सामने से गुजरती हैं. रावण की बारे में एक मान्यता यह भी है कि यहां पर एकातरा बुखार जो एक दिन छोड़कर बुखार आता है, रावण के पैर में रक्षा सूत्र बांधने से ठीक हो जाता है. लोग यहां पर आते हैं और रावण के पैरों में लच्छा जिसे लाल धागा कहते हैं, वह बांधते हैं.

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