Fri. Jun 20th, 2025

BBC टाइम्स इन उज्जैन 23 अक्टूबर।

सम्राट विक्रमादित्य के समय से महाअष्टमी पर होती आ रही है शासकीय पूजा-

उज्जैन ।उज्जैन में कई जगह प्राचीन देवी मन्दिर है, जहां नवरात्रि में पाठ-पूजा का विशेष महत्व है। नवरात्रि में यहां काफी तादाद में श्रद्धालु दर्शन के लिये आते हैं। इन्हीं में से एक है चौबीस खंबा माता मन्दिर। कहा जाता है कि प्राचीनकाल में भगवान महाकालेश्वर के मन्दिर में प्रवेश करने और वहां से बाहर की ओर जाने का मार्ग चौबीस खंबों से बनाया गया था। इस द्वार के दोनों किनारों पर देवी महामाया और देवी महालाया की प्रतिमाएं स्थापित है। सम्राट विक्रमादित्य ही इन देवियों की आराधना किया करते थे। उन्हीं के समय से नवरात्रि के महाअष्टमी पर्व पर यहां शासकीय पूजन किये जाने की परम्परा चली आ रही है।

बदलते समय के साथ राजाओं के पश्चात जागीरदार, जमीनदार और इस्तमुरार द्वारा यहां पर देवियों का पूजन किया जाने लगा। यह परम्परा आज भी लगातार चल रही है। इसका निर्वहन अब जिले के कलेक्टर द्वारा किया जाता है। शनिवार को महाअष्टमी पर्व पर परम्परा अनुसार कलेक्टर द्वारा यहां शासकीय पूजन किया जायेगा तथा देवी को मदिरा का भोग लगाया जायेगा।

चौबीस खंबा माता मन्दिर के पं.राजेश पुजारी ने जानकारी दी कि यह उज्जैन नगर में प्रवेश का प्राचीन द्वार है। नगर रक्षा के लिये यहां चौबीस खंबे लगे हुए थे, इसलिये इसे चौबीस खंबा द्वार कहते हैं। यहां महाअष्टमी पर शासकीय पूजा तथा इसके पश्चात पैदल नगर पूजा इसीलिये की जाती है ताकि देवी मां नगर की रक्षा कर सके। प्राचीन समय में इस द्वार पर 32 पुतलियां भी विराजमान थी। यहां हर रोज एक राजा बनता था और उससे ये पुतलियां प्रश्न पूछती थी। राजा इतना घबरा जाता था कि डर की वजह से उसकी मृत्यु हो जाती थी। जब विक्रमादित्य की बारी आई तो उन्होंने नवरात्रि की महाअष्टमी पर देवी की पूजा की तथा उन्हें देवी से वरदान प्राप्त हुआ।

इस द्वार पर विराजित दोनों देवियों को नगर की रक्षा करने वाली देवी कहा जाता है। नवरात्रि पर महाअष्टमी और महानवमी पर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

error: Content is protected !!