BBCTimes.in 10 aug 2023 | प्रदेश के छिंदवाड़ा में पंडित धीरेंद्र शास्त्री की कथा चल रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ जी आयोजन को लेकर जोरदार चर्चाओं में है।
वैसे तो देश में विचित्र राजनैतिक घटनाक्रम चल रहा है। राज्यों में एक दूसरे के घोर विरोधी दल केंद्र में एक होने का ढोंग कर रहे है।
लेकिन इससे अलग मध्यप्रदेश में कमलनाथ जी ने हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र के प्रबल समर्थक पंडित धीरेंद्र शास्त्री की कथा क्यों कराई? इस पर जोरदार बहस चल पड़ी है। राजनीति के जानकार उत्तर में
मुझ पर चढ़ गया भगवा रंग रंग
गीत गुनगुनाते हुए मुस्कुराते है।
कमलनाथ जी का यह रूप कांग्रेस और देश की राजनीति के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। भाजपा का कोई कार्यक्रम हो और मंच भगवा रंग से रंगा हो तब यह चर्चा का विषय नही रहता।
लेकिन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री से लेकर कई बड़े पदों की शोभा बड़ा चुके कमलनाथ जी के कार्यक्रम में भगवा रंग में रंगा माहौल बना यह आम लोगो मे चर्चा का विषय है।
बात यह है की हिंदुत्व के मुद्दे का बढ़ता राजनैतिक धुर्वीकरण क्या अब सभी को भाने लगा है।
पहले भाजपा अकेले हिंदुत्व का परचम लहराती रही है।
इसे लेकर भाजपा को दूसरे सभी दल कोसते भी आए है।
लेकिन अब कांग्रेस जब हिंदुत्व का चोला ओढ़ रही है? तब सभी के मुंह में मूंग क्यों भर गए है?।
हिंदुत्व पर प्रहार कर मीडिया की सुर्खियों में रहने वाले दिग्विजयसिंह जी जैसे नेता अब क्या बोलेंगे।
श्री सिंह को चाणक्य के रूप में महिमामण्डित किया जाता है।
लेकिन पंडित धीरेंद्र शास्त्री की कथा के मामले में उनकी चुप्पी पर लोगो की निगाहें लगी हुई है।
यह सत्य है की गली मोहल्लों चौबारों पर आज आम लोगो के मध्य असल मुद्दा और चर्चा का प्रमुख विषय कांग्रेस और भगवा का मिलन बन गया है। आम आदमी इतिहास की बात करते हुए बताता है की कांग्रेस अपने आपको धर्मनिरपेक्ष बताती तो है लेकिन केरल में मुस्लिम लीग से समर्थन लेकर सरकार भी चलाती है। एक समय आज है जब कांग्रेस पूज्य भगवा झंडे के नेतृत्व में धार्मिक अनुष्ठान करा रही है।
वैसे हिंदुत्व के मुद्दे पर बात निकल रही है तो यह स्थापित सत्य है की कांग्रेस ने हिंदुत्व के मुद्दे पर घोर विरोध की नीति अपना रखी थी। इसका लाभ भी कांग्रेस ने वर्षो तक उठाया। अल्पसंख्यक बहुसंख्यक के नाम पर देश मे डर का माहौल निर्मित कर वोटो का धुर्वीकरण किया और सत्ता हासिल करती रही ।
इस तरह वोटों की फसल भी बहुत उगाई, और लगातार सत्ता भी हाँसिल की।
अब सवाल यह है की क्या कांग्रेस अपने अल्पसंख्यक वोट बैंक को छोड़कर राजनीति करना चाहती है?
यह सवाल आज आम आदमी की चर्चा में है। इसलिए यह महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हो गया है। कांग्रेस ने पिछले समय महाराष्ट्र में हिंदुत्व की कट्टर और प्रबल समर्थक शिवसेना को न सिर्फ समर्थन दिया था अपितु इससे भी आगे निकलकर सरकार में भागीदारी की थी।
शिवसेना के नेतृत्व को स्वीकार भी किया था।
यह सत्य है की केंद्र की राजनीति में मोदीजी के कदम रखने के बाद से सत्ता में काबिज होने के मुख्य मुद्दे बदल गए है। विश्लेषक इस तथ्य को दबी जुबान से ही सही मानते है कि विगत दो लोकसभा चुनाव के परिणामों का विश्लेषण यह बताता है की हिंदुत्व के मुद्दे पर पोलराइजेशन हुआ था।
इसका मतलब सत्ता की चाबी भी अब बहुसंख्यक हिन्दू मतो के हाथों में आ गई है।
यहां यह उल्लेखनीय है की प्रबल हिंदुत्व जैसे इस बड़े मुद्दे के कारण राहुल गांधी अमेठी जैसी परम्परागत सीट से पिछली बार का लोकसभा चुनाव हार गए थे।
देश में आज भी हिंदुत्व का मुद्दा सबसे बड़ा मुद्दा है। और कांग्रेस के कदम उस तरफ बढ़ना क्या संदेश दे रहा है। यह विचारणीय तो है?।
राजेश मूणत।