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“शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रतलाम में किया गया कार्यशाला का आयोजन”

“संगीत ईश्वरीय वाणी है तथा संगीत मोक्ष प्राप्ति का एकमात्र साधन है और वर्तमान में बंदिशों के माध्यम से ही आज हमारी राग सम्पदा जीवित है।” यह उद्गार व्यक्त किये शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय में आयोजित कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित डॉ. नीलिमा छापेकर ने। विश्व बैंक गुणवत्ता उन्नयन परियोजना एवं संगीत विभाग के संयुक्त तत्वाधान में दिनांक 23 नवंबर 2022 को एक दिवसीय
कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें इन्दौर से पधारी किराना घराने की पद्म विभूषण से सम्मानित डॉ प्रभा अत्रे की शिष्या डॉ नीलिमा छापेकर ने “शास्त्रीय संगीत में बंदिश” विषय पर अपना सारगर्भित व्याख्यान एवं प्रस्तुतीकरण किया।

प्रारम्भ में अतिथियों द्वारा माँ सरसवती के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलन किया। सरस्वती वन्दना कु. वंशिता पंड्या व कु. भाविनी परिहार ने प्रस्तुत की। अतिथियों का स्वागत डॉ. स्नेहा पंडित, डॉ. रोहित चावरे, डॉ अनामिका सारस्वत ने किया। अतिथि परिचय देते हुए डॉ स्नेहा पंडित ने कहा कि डॉ नीलिमा छापेकर किराना घराने की प्रतिष्ठित गायिका डॉ प्रभा अत्रे की शिष्या हैं। आप 2007 में माता जीजाबाई शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, इन्दौर से प्राध्यापक के पद से सेवानिवृत्त हुई। आप कई वर्षों तक विश्वविद्यालयीन अध्ययन मंडल की अध्यक्ष रही हैं। कई मंचीय प्रस्तुतियाँ आपने दी हैं। कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़कर आप निरन्तर संगीत के क्षेत्र में आज भी कार्यरत हैं।अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्राचार्य डॉ. कटारे ने कहा कि यह सौभाग्य का विषय है कि आज हमारे बीच डॉ निलीमा छापेकर जैसी प्रतिष्ठित गायिका उपस्थित हैं, निश्चित रूप से आपके ज्ञान से हमारी छात्राएँ अवश्य लाभान्वित होंगी और यही हमारी कार्यशाला का भी उद्देश्य है। IQAC समन्वयक डॉ. कटारिया ने कहा कि मध्यप्रदेश शासन की विश्व बैंक परियोजना के अन्तर्गत अकादमिक उन्नयन हेतु इस प्रकार की कार्यशाला का आयोजन हम विगत वर्षों में भी करते रहे हैं और छात्राओं ने इसका भरपूर लाभ उठाया है। नीलिमा जी ने बंदिश का विश्लेषण करते हुए कहा कि संगीत को किसी बाह्य साधन की आवश्यकता नहीं होती, यह स्वयं ही प्रस्फुटित होता है। सुख हो या दु:ख किसी भी अवस्था में हमारी मनोभाव जब स्वर के साथ लय में प्रवेश करते हैं तो वह संगीत बन जाता है। संगीत भावों की अभिव्यक्ति है। कला के दो रूप हमें दिखाई देते है – दृश्य कला और श्रव्य कला। श्रव्य कला के अन्तर्गत संगीत सुनकर आनन्द देने की कला है। संगीत स्वर तथा शब्द प्रधान होता है। संगीत में राग के नियमों के अनुसार चलना आवश्यक है। शास्त्रीय संगीत में संगीत का शास्त्र होता है इसलिये उसे शास्त्रीय संगीत कहा जाता है। संगीत का कोई भी प्रकार हो वह सुरीला होना चाहिये। आपने समप्राकृत रागों की व्याख्या करते हुए कलावती तथा जनसम्मोहिनी, बागेश्री तथा रागेश्री के सुन्दर बंदिशों से प्रस्तुत किया। आपने बंदिश की व्याख्या करते हुए कहा कि राग संगीत को साकार करने के लिये शास्त्रों में बंदिश का प्रयोग किया गया। विगत 200 वर्षों से ख्याल गायन हमारी पहचान बन गया है। संगीत में बंदिश का अर्थ है पूर्व रचित धुन जो स्वर, ताल तथा लय में बंधी होती है। जिस प्रकार छंद में काव्य का एक निश्चित मीटर होता है उसी तरह संगीत में काव्य का मीटर ताल होता है। बंदिश से राग सुरक्षित रहता है। बंदिश राग का आईना होती है। हमारे शास्त्र में बंदिशों का अथाह संग्रह है, लेकिन आज भी नये-नये गायक-संगीतज्ञ नित नयी बंदिशों का सृजन कर रहे हैं। आपने अलग-अलग लय की अलग-अलग बंदिशों का भी बखूबी प्रस्तुतीकरण करके दिखाया। आपने कहा कि एक राग में बहुत सी बंदिश सीखना चाहिये, जिससे राग का स्पष्ट रूप दिखायी देता है। सामान्य श्रोता भी बंदिश के माध्यम से राग को समझ सकता है। शब्द का अर्थ समझ कर बंदिश का प्रस्तुतीकरण होना चाहिये। स्पष्ट उच्चारण, श्वास का संतुलन, लय संयोजन,शब्दों का अर्थ समझकर गाना बंदिश को पुष्ट करता है। बंदिश राग का आधार स्तम्भ होती है।

अन्त में आपने राग यमन में डॉ. प्रभा अत्रे की “जय जय जय साईं राम” एवं राग मधुकोन्स आदि रागों में बंदिश छात्राओं को सिखायी। आपने छात्राओं की जिज्ञासाओं का भी समाधान किया। आपके साथ हारमोनियम पर डॉ. रोहित चावरे तथा तबले पर श्री तल्लीन त्रिवेदी थे। इस अवसर पर गुणवत्ता प्रकोष्ठ प्रभारी डॉ. अनिल जैन, श्री हरीश शर्मा, प्रो. वी. के. जैन, प्रो. नारायण विश्वकर्मा, प्रो. नीलोफर खामोशी, डॉ. माणिक डांगे, डॉ. सरोज खरे, महाविद्यालय कीे भूतपूर्व छात्राएँ श्रीमती संगीता ललवाणी, सोहम, प्रप्रिया उपाध्याय, रितु परमार, युवा कलाकार श्री अक्षद पंडित सहित नगर के गणमान्य सदस्य तथा बड़ी संख्या में छात्राएँ उपस्थित थी। कार्यक्रम का संचालन संगीत विभागाध्यक्ष डॉ. बी. वर्षा ने किया तथा आभार डॉ. रोहित चावरे ने माना।

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