*B B C टाइम्स इन* रतलाम,20 जून। आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन निश्रा में विगत एक पखवाड़े से धार-झाबुआ के वनवासी अंचलों और रतलाम जिले के ग्रामीण अंचल में मानवता की अलख जगा रही अहिंसा यात्रा 22 जून को सुबह रतलाम आ रही है।
निर्धारित कार्यक्रमानुसार सूर्योदय के कुछ समय पश्चात लगभग 6: 30 बजे आचार्यश्री महाश्रमण अपनी धवल रश्मियों के साथ समीपस्थ तीर्थ करमदी की तरफ से रतलाम नगर में प्रवेश करेंगे।
तेरापंथ समाज ने श्रद्धालुओं से विनय किया है कि महातपस्वी आचार्य प्रवर के अभिवन्दन में सड़क के दोनों छोरो पर लाईन बनाकर खड़े रहें। और अनुशासन का पालन करे।
तेरापंथ धर्मसभा के अध्यक्ष अशोक दख एवं मंत्री विजय वोरा ने उपरोक्त जानकारी देते हुए बताया कि कीर्तिधर महापुरुष आचार्यश्री महाश्रमणजी के प्रवेश के दौरान निर्धारित वेशभूषा में सजे, बालक, किशोर, युवा, प्रौढ़, वृद्ध पुरुष व महिला सभी अपने आराध्य की अभिवन्दना में करबद्ध होकर उपस्थित रहेंगे ।
हजारों जुड़े हाथ और हजारों नयन इस नयनाभिराम और अविस्मरणीय पल को अपने नयनों से निहारने के लिए लम्बे समय से प्रतीक्षारत है।
यात्रा का मार्ग
आचार्य श्री निर्धारित समयानुसार अपनी विशाल श्वेत रश्मियों के साथ नगर के रविदास चौक (करमदी नाका ) से सेठजी का बाज़ार स्थित तेरापंथ सभा भवन पधारेंगे। इसके बाद अहिंसा यात्रा के साथ घास बाज़ार से चौमुखीपुल,चांदनी चौक, तोपखाना,बजाजखाना,
न्यू क्लाथ मार्केट, डालुमोदी बाज़ार,नाहरपुरा,धानमंडी एवं शहर सराय होते हुए सैलाना बस स्टैंड एवं चेतक ब्रीज़ होकर अमृत गार्डन पधारेंगे।
17 वर्षो बाद आया अवसर
वर्ष 2004 के बाद अब तेरापंथ के आचार्य मालवा की धरती पर पधार रहे है। आचार्यश्री महाश्रमणजी मालवा की पावन भूमि पर अपनी धवल सेना के साथ मात्र 3 दिन 22 से 24 जून का प्रवास करेंगे। नगर के अमृत गार्डन और अतिथि पैलेस पर उनका प्रवास रहेगा।
कीर्तिधर महापुरुष आचार्य श्री महाश्रमणजी ने 3 देश और 23 राज्यो में अहिंसा यात्रा के साथ पैदल भृमण कर तेरापंथ के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय का अंकन कर दिया है ।
जन-जन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की भावना को जागृत करने के लिए अपनी धवल सेना के साथ 9 नवम्बर 2014 को नई दिल्ली के लाल किले से प्रस्थान करने वाले तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य आचार्य महाश्रमणजी अपनी दृढ़ संकल्प शक्ति के साथ गतिमान हुए है । अपने कोमल कदमों से आपने भारत सहित नेपाल एवं भूटान तक मानवता के संदेश को जन-जन के मानस में मानों प्रतिष्ठित-सा कर दिया है।
आचार्य महाश्रमण एक परिचय
आचार्य महाश्रमण का जन्म राजस्थान के चुरू जिले के सरदार शहर में 13 मई 1962 को हुआ। बारह वर्ष की अल्पायु में दिनांक 5 मई 1974 को सरदार शहर में आचार्य श्री तुलसी की अनुज्ञा से मुनि सुमेरमलजी लाडनूं के हाथों आप दीक्षित हुए। आचार्य तुलसी ने इनमें तेरापंथ के उज्ज्वल भविष्य के दर्शन किए और उन्होंने दिनांक 9 सितंबर 1989 में इन्हें महाश्रमण के पद पर मनोनीत किया।
आचार्य श्री महाश्रमणजी तेरापंथ के ग्यारहवें आचार्य हैं। वे 9 मई 2010 को आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के महाप्रयाण के बाद इस पद पर प्रतिष्ठित हुए है।
आचार्य महाश्रमण की उत्तरोत्तर प्रगति आचार्य प्रवर की मोहनलाल से मुनि मुदितकुमार, फिर महाश्रमण और फिर युवाचार्य तथा आचार्य बनने तक की यह यात्रा, समर्पण, निष्ठा, मर्यादा, अनुशासन, उत्कृष्ट भक्ति तथा साधुता की अपूर्व कहानी है।
आचार्य महाश्रमण एक ऐसे परिव्राजक है, जो 50 हज़ार से ज्यादा कि. मी. से अधिक पैदल यात्रा पूरी करने के बाद आज भी उतने ही उत्साह से गतिमान है।
प्रवचन का प्रभाव
आचार्य प्रवर के प्रवचनों में जाति धर्म से ऊपर मानवता का शंखनाद होता है। इसलिए आपके उपदेशो से न सिर्फ व्यसनमुक्त समाज का निर्माण हो रहा है। अपितु सामाजिक कुरूतियों एवं अंधविश्वासों से भी मुक्ति मिल रही है।
उत्कृष्ट साहित्यकार
आचार्य महाश्रमण एक ऐसे साहित्यकार है जो दूरदृष्टा भी है। आपकी सृजनशीलता के परिणाम कई ख्यात पुस्तको के
रूप में सामने है। आपकी रचनाओं में आओ हम जीना सीखें, दुःख मुक्ति का मार्ग, संवाद भगवान से, रोज की एक सलाह, और निर्वाण का मार्ग बेहद प्रभावकता के साथ पाठकों के मन पर गहरी छाप छोड़ती है।
भाषा की विद्वता
आप श्री हिंदी भाषा के साथ – साथ अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत,और राजस्थानी भाषा के विद्वान है।
कुशल प्रशासक
आचार्य महाश्रमण की छवि एक कुशल प्रशासक के रूप में भी है। आप तेरापंथ धर्मसंघ के कुशल अधिशास्ता है। इस संघ में 800 से अधिक साधु साध्वी और समण- समणी है। 40 हज़ार युवा कार्यकर्ता और 60 हज़ार महिला नेत्रियां तेरापंथ धर्मसंघ की देश भर में फैली 415 से अधिक शाखाओं के माध्यम से संस्कृति और संस्कारों के निर्माण के महाअभियान में जुटे हुए है।
प्रेक्षाध्यान नवीन आयाम
आचार्य महाप्रज्ञजी के ध्यान के प्रकल्प प्रेक्षाध्यान को आचार्य महाश्रमण जी ने और भी प्रभावी स्वरूप प्रदान किया है। ध्यान के इस माध्यम से विचारों और चेतना को शुद्ध करने का अभ्यास किया जाता है। मन और आत्मा के सूक्ष्म स्पंदनों को राग – द्वेष से मुक्त होकर जानने की इस विधा के लिए देश भर में आपके सानिध्य में शिविर लगते है। व्याधि, आधि और उपाधि को समाप्त करने वाला प्रेक्षाध्यान समाधि का मुख्यद्वार है।