Sat. Jun 21st, 2025

*B B C टाइम्स इन* रतलाम 22 फरवरी सोमवार शहर और प्रदेश में आए दिन हादसे हो रहे है। शासन-प्रशासन हादसों के बाद सतर्क होने के आदेश निर्देश संबंधित अधिकारियों को जारी करते है, लेकिन हादसों के पहलेे यदि निर्देश जारी हो जाए तो दुर्घटनाओं को टाला जा सकता है, लेेकिन अधिकारी किसी की सुनते नहीं । बैैठकों में व्यस्त जिला प्रशासन केवल शासन के निर्देशों का पालन करवाने के अलावा कुछ नहीं करता।
सारे अधिकारी केवल बैठकों के नाम पर अपने दफ्तरों सेे गायब रहते है। लोग समस्याओं को लेकर इन दफ्तरों में भटकतेे रहते है,लेकिन कोई अधिकारी उनकी गुहार सुनने को तैयार नहीं, केवल एक ही रटा-रटाया डायलॉग सरकारी कार्यालय में मिलता है कि साहब अभी कलेक्टर कार्यालय की बैठक में गए है या कभी कहा जाता है कि दौरे पर गए है।
जिलेे में वैसे तो अनेक ऐसे पुल-पुलिया है जो हादसों को निमंत्रण देे रही है, लेेकिन पिछले दिनों जब इस संवाददाता का सागौद रेल पुलिया पर से आना-जाना हुआ तो महसूस हुआ कि यह पुलिया राहगीरों के लिए कितनी खतरनाक है। तत्काल फोटो लिए तब लोगों ने भी कहा कि साहब यहां कई बार दुर्घटना होती है, लेकिन प्रशासन कभी जागता नहीं। इस पुलिया पर वाहन चालक का जरा सा भी बेलेंस बिगड़े तो वह सीधे पटरी पर ही जाएगा।

फोटो विधायक और आयुक्त को भी दिखाएं..
उक्त फोटों विधायक चेतन्य काश्यप को भी दिखाया और कार्यक्रम में उपस्थित निगमायुक्त को भी। दोनों ने कहा कि वाकय में यह खतरनाक है और इस पर शीघ्र ही ध्यान दिया जाएगा। आयुक्त महोदय ने तो यहां तक कहा कि इस पुलिया का चौड़ीकरण प्रस्तावित है तब उनसे कहाकिपता नहीं कब पुलिया का चौड़ीकरण होगा, इसी बीच कोई दुर्घटना हो गई तो न जाने क्या होगा?
यातायात का दबाव हमेशा बना रहता है
चारों तरफ से पुलिया के फोटो लिए गए है, जिसमें यह दर्शाया गया हैै कि पुलिया के चारों तरफ कोई रोक नहीं और ना ही कोई रैलिंग लगी है और ना ही पुलिया पर कोई लाईट लगी है। इस मार्ग पर अनेक देेवस्थल है और यह मार्ग बाजना की ओर जाता हैै, जहां लगातार यातायात का दबाव बना रहता है। रात्रि में इस मार्ग पर अंधेरा होने से गंभीर दुर्घटना से इंकार नहीं किया जा सकता।
छपी खबरों का असर नहीं
कुछ दिन पूर्व भी इस मार्ग का फोटो छापा गया, लेेकिन उसका कोई सर नहीं हुआ और ना ही प्रशासन ने कभी इसे गंभीरता से लिया। ऐसा लगता है कि छपनों वाली खबरों की कतरने सूचना प्रकाशन विभाग सेे जिला कलेक्टर को जाती है और वहां से संबंधित विभाग को। समाचार की कतरने सीधे कलेक्टर को भी भेजी जाती है उनके संज्ञान में भी आती है, लेकिन पता नहीं क्यों उस पर कार्रवाई नहीं होती?
सलाहकार समितियां ही नहीं बनी
वर्तमान दौर में सारे सरकारी कार्यालयों की कार्यप्रणाली चर्चाओं में है। इनमें से अधिकांश कार्यालयों में समस्याओं का अंबार है, राजस्व विभाग और अन्य दो-तीन विभाग तो ऐसे है जो काफी चर्चाओं में है। वह चर्चा कैसी होती है इसे बताने की आवश्यकता नहीं? अनेक विभागों के कार्यप्रणाली में सुधार केे लिए सलाहकार समितियों केे गठन का प्रावधान है। दो दर्जन सेे अधिक समितियां में वर्षों से सलाहकार सदस्य नहीं बनाए गए है, इसमें न तो सत्तारूढ़ दल ने रूचि ली है और ना ही जिले के प्रमुख अधिकारी ने। जो एक-दो समितियां बनी है उसमें भी ऐसे लोगों का समावेश है जिनका जनता से कोई लेनादेना नहीं।
रेडक्रास सोसायटी भी अफसरों केे भरोसे
रेडक्रास सोसायटी केे चुनाव दो-तीन वर्षों से अपेक्षित है। यह भी अफसरों के भरोसे है। जब इस समिति में चुने हुए लोग थे तब इस समिति का कार्यकाल काफी अच्छा रहा और जन सहयोग से स्वास्थ्य सेेवाओं में भी सुधार लाया गया। एम्बुलेंस व्यवस्था भी सुधरी और लोगों की पूछ-परख भी होनेे लगी थी। मरीजों को विश्वास था रेडक्रास समिति पर, लेकिन जबसे इस समिति का पुनर्गठन नहीं हुआ तब से जनता द्वारा एकत्र किए गए संसाधन और सहयोग राशि भगवान भरोसे ही है।
जिले की स्वास्थ्य सेवाएं लचर है। मेडीकल कालेज सेे लगाकर जिला चिकित्सालय तक चर्चाओं में है और यह भी आरोप लगते रहे है कि निजी अस्पतालो में यहां का अमला अपनी सेवाएं दे रहा है, शिकायतों के बाद भी कोई पड़ताल नहीं और ना ही कोई कार्रवाई।
योजनाओं का भी कही अता-पता नहीं लगता
प्रदेश केे मुखिया ने हाल ही केे दौरेे में अनेकों सौगाते दी। पूर्व में भी जब वह रतलाम आए तब भी उन्होंने कई घोषणाएं की और रतलाम को सौगाते दी। शहर विधायक श्री काश्यप ने भी अनेक योजनाएं बनाकर शासन के समक्ष रखी। उस पर भी शासन ने ध्यान दिया, योजनाएं स्वीकृत की, लेेकिन विकेेंद्रीकरण और निगरानी केे अभाव में इन योजनाओं का भी कही अता-पता नहीं लगता।
क्या पार्टी के संविधान में आयु सीमा निर्धारित की गई है….?
कहने का मतलब है कि अफसरों केे भरोसे ही सत्ता के सारे सुत्र है। कार्यकर्ताओं को तो सत्ता का सुख मिलना तो दूर उन्हें आयु सीमा में बांध दिया गया है और यहीं आयु सीमा उन्हें सत्ता और संंगठन के गलियारों में जाने में बाधक बनी हुई है। कार्यकर्ताओं ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया है कि क्या पार्टी के संविधान में आयु सीमा निर्धारित की गई है या चंद नेताओं ने अपनी मर्जी से यह सब निर्धारित कर दिया। दो वर्षों से भी अधिक समय गुजर गया लेकिन पार्टी की जिला कार्यकारिणी का गठन पूर्ण नहीं हुआ, दो-चार पदाधिकारी ही पूरे जिले के संगठन को संचालित कर रहे है यह भी कार्यकर्ताओं की नाराजगी का कारण है।
सत्ता और संगठन में विकेंद्रीकरण जरूरी
हाईकमान को चाहिए कि वह सत्ता व संगठन में विकेंद्रीकरण करें और उन समस्याओं पर गंभीरता से गोर करवाए जो तात्कालिन रुप से हल होना आवश्यक है। अन्यथा इसका खामियाजा नागरिकों की नाराजगी सेे कार्यकर्ताओं और संगठन दोनों को भुगतना पड़ सकता है।

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