Mon. Apr 15th, 2024
हिंदी कहानी
लेखक – हरीश दर्शन शर्मा

भारत में कही दूर एक छोटे से गांव की सुबह बहुत सुहावनी थी | सूरज की धुप आंगन में लगे पेड़ से छन कर अंजली के घर को नहला रही थी | पर रोज़ की तरह आज की सुबह मासूम अंजली के लिए सामन्य न थी | उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि उसके पिता रुघनाथ ने उससे दूरियां बना ली ? कल रात तक तो सब ठीक था | अंजलि के नन्हे मन में कई सवाल उठ रहे थे | कितने प्यार से सुलाया था कल बाबा ने मुझे , सुबह पता नहीं क्या हुआ ? बाबा तो मेरे बड़ी से बड़ी गलती भी माफ़ कर देता है | पर मैंने ऐसी कौन सी  गलती की जो वो माफ़ भी नहीं कर पा रहे ?

१३ साल की मासूम अंजलि ये सब सोच ही रही थी की उसकी माँ ने उसे आवाज़ लगाई | माँ की आवाज़ सुन अंजली घर की तरफ जाने लगी, रसोई के दरवाज़े तक ही पहुंची थी की अचानक माँ ज़ोर से बोली – अरी अरी रसोई के अंदर कदम मत रख देना | अंजली पहले तो थोड़ा ठिठक गई पर फिर माँ की तरफ बढ़ते हुए बोली – पर माँ हुआ क्या ? इतने में पिता की सख्त आवाज़ ने अंजलि कदम रोक दिए – खबरदार , अंजलि रसोई के अंदर मत जाना | अपने पिता की इतनी सख्त आवाज़ अंजलि ने पहेली बार सुनी थी | माँ की तरफ देखते हुए उसकी आँखे भर आई थी | उसने प्रश्नवाचक दृष्टि से माँ को देखा , माँ  की नज़रे अंजलि से होती हुई पिता पर टिक गई |  रुघनाथ अपनी पत्नी के इशारे को समझ गए थे और चुप चाप घर से बाहर  निकल गए | 

गांव के चौबारे पर बैठे बातें करते कुछ बुज़ुर्गो ने रुघनाथ को आज अकेले आते देखा तो उनमे से एक ने कहा – क्या रुघनाथ आज अंजलि बिटिया साथ नहीं आई ? दूसरे ने कहा – अरे भाई क्या सूरज आज पछिम से निकल रहा है ? ऐसा कैसे पिछले ७-८ साल में ऐसा तो पहली बार हुआ देख रहे है | बिटिया ठीक तो है न ? रुघनाथ उनकी बातो का जवाब है देना चाहते थे | बस  – ठीक है बोले और आगे बढ़ गए थे | दरअसल रुघनाथ जी रोज़ अपनी बिटिया के साथ ही सुबह की सैर के लिए निलते थे | पर आज अकेले ही गांव की पगडण्डी से होते हुए खेत की तरफ जा रहे थे. | रुघनाथ जी गांव के सरपंच थे और अंजली  उनकी प्याली लाड़ली बेटी | अभी पिछले महीने ही रुघनाथ ने अपनी बेटी के १३ वे जन्मदिन पर गांव के सभी बच्चों  में मिठाइयाँ  बाटी थी | और ये सिलसिला अंजली के जन्म के समय से ही साल दर  साल बदस्तूर जारी था | अपनी पहली बेटी के जन्म से बहुत खुश थे रुघनाथ पर आज वो बहुत उदास , गहरी सोच में डूबे बस चले जा रहे थे | 

        इधर घर का अचानक बदला माहोल अंजली को समझ नहीं आ रहा था | अंजली की माँ उसे समझाते हुए कह रही थी –  सब ठीक हो जायेगा बेटी | ऐसा हर औरत के साथ होता है, पर ये बात किसी से कहना नहीं और अपने छोटे भाई से तो बिलकुल भी नहीं | ये सिर्फ औरतो का राज़ है , ठीक है | और हाँ अब तुम अगले तीन दिनों तक  कोठरी में ही रहोगी ठीक है , तुम्हारी बिस्तर दरी , रज़ाई सब उसी में है | और तुम्हे खाना , पीना सब वही रखे बर्तन में खाना है , जिसे तुम्हे खुद ही धोना भी है | घर की राशि में जब तक मैं न कहु कदम मत रखना , और घर के पूजा वाली जगह के तो सामने भी मत जाना , घर के मटके, पानी , खाने पीने की चीजों को छूना भी पाप है तुम्हारे लिए | समझ गई | 

    काफी देर तक माँ अंजली को समझती रही थी , बाउट नियम कायदे बताये थे माँ ने , जिनका पालन अंजली  को सख्ती से करना था | पिता के घर में आने की आहट पाते ही , अजंली अपनी कोठरी  की और दौड़ गई थी | कोठरी में अकेली बैठी अंजली के कानो में माँ की बताये नियम गूंज रहे थे | उसके मन में कई सवाल कोहराम मचा रहे थे | जिनके जवाब में उसे बस यही  सुनने को मिला था कि जब बड़ी होगी समझ जाएगी | अकेले कोठरी में बैठी नन्ही अंजली कई बार रोइ थी और खुद को ही समझा भुझा कर चुप भी करा चुकी थी | 

   प्रथम रजो दर्शन के ये तीनो दिन अजंली ने बहुत कम सुविधाओं वाली कोठरी में बिताये थे | वो अपने छोटे छोटे हाथों  से अपने कपड़े धोती , अपने बर्तन साफ़ करती , खाना भी उसे दूर से सरका कर दिया जाता | अपनी हर छोटी बात पिता से पूछने वाली अंजली अपने मन में उठने वाले सवाल अब पिता से नहीं पूछ पाई थी |   उन तीन दिनों में पिता रुघनाथ चाहते हुए भी अपनी प्यारी बच्ची से दूर ही रहे थे | उस दौरान अपने पिता के शुष्क व्यव्हार के कारण , अंजली  ये भी न पूछ पाई थी की आखिर उसका अपराध क्या था ? अपने परिवार के बदले व्यव्हार के साथ वो अपने शरीर में हो रहे बदलाव व पीढ़ा भी झेल रही थी | 

    और फिर ये काल बीता , आज ५वे दिन जब अंजलि की स्थिति सामन्य हुई तो उसके पिता ने उसे बड़े प्यार से अपनी गोद  में उठा लिया | पर अंजलि का मन अब कठोर हो  चूका था , वो अब काम बोलने लगी थी | अजंली और उसके पिता के बीच एक अंजानी  सी दूरी  बन गई थी | उसके व्यव्हार में आई गंभीरता को पिता कहते बिटिया अब समझदार हो गई है | 

  समय अपनी अविराम गति से चलता रहा , दिन महीने साल बीते | आज लगभग २१ साल बाद , अजंलि का ब्याह हो चूका है , और वो अपने पति व् बच्चो समेत अपने पिता के घर आई है | कुछ समय पहले तक रुगनाथ का घर नाती, पोतों  की किलकारियों से गूंजता था | पर आज रुघनाथ के घर आँगन में सन्नाटा था | माँ दरवाज़े बैठी आने पति का रास्ता देख रही थी | बेटी अंजलि का परिवार , और बेटे सहित सुशिल बहु के चेरो पर भी गंभीर दुःख के बादल छाये थे | किसी को भी अस्पताल जाने की इज़ाज़त नहीं थी | 

   अस्पताल में रुघनाथ के कमरे का दरवाज़ा एक  नर्स ने खोला , दरवाज़े की आहत से रुघनाथ अपनी यादो से बाहर आए थे | अस्पताल के उस छोटे से खाली कमरे को अपने घर में बनी कोठरी से तुलना करते हुए उनकी आँखे डबडबा आई थी | कमरे ने नर्स की आवाज़ गुंजी – आपकी रिपोर्ट नेगेटिव आई है | अब आप एहतियात के साथ घर जा सकते है | आपकी  क़्वारन्टाइन अवधि खत्म हो गई है | 

      रुघनाथ के घर पहुंचने पर पुरे परिवार ने रुघनाथ का फूल मालाओ से स्वागत किया | पर रुघनाथ अपनी बेटी अंजलि से नज़रे नहीं मिला पा रहे थे  | सहसा उन्हीने अंजली को गले लगा लिया और बीएस रोए जा रहे थे | 

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