Fri. Apr 19th, 2024

*B B C टाइम्स इन* उज्जैन 02मार्च सोसायटी फ़ॉर प्रेस क्लब के 2-3 पदाधिकारियों के द्वारा पत्रकारों की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है व न्यायालय के एक आदेश का हवाला देते हुए कपटपूर्ण जानकारी प्रेषित की गई है ।


2017 में हुए सोसायटी फ़ॉर प्रेस क्लब के निर्वाचन में मतदान से ऐन वक्त पहले 22 नाम बढ़ाये गए थे और उनसे मतदान कराया गया था, जबकि फर्म सोसायटी के नियम अनुसार चुनाव से पूर्व जो मतदाता सूची जारी होती है उसमें एकाएक नये नाम नही बढ़ाये जा सकते ।
यदि नाम बढ़ते है तो उन्हें मतदान का अधिकार अगले चुनाव में होता है ।


यह नाम चुनाव जीतने के लिए ऐनवक्त पर बढ़ाए गए थे जिसका विरोध बड़ी संख्या में पत्रकारों ने किया था एवं श्री निरुक्त भागर्व, शेलेन्द्र कुल्मी, सचिन कासलीवाल, सुनील मगरिया, जय कौशल ने एक परिवाद इस धांधली के विरोध में 4 वर्ष पूर्व न्यायालय में लगाया था परंतु प्रचारित यह किया जा रहा है कि यह केस उन 22 पत्रकारों के विरुद्ध लगाया गया था जिनके नाम बढे है । जबकि सत्यता यह है कि अपील में सदस्यता देने का विरोध नही था अपितु जो चुनाव से ठीक पूर्व गलत प्रक्रिया से नाम जोड़े गए थे उस पर आपत्ति थी ।
प्रेस क्लब के कुछ पदाधिकारि यह दुषप्रचार कर रहे है कि उक्त 22 लोगो के विरोध करने के लिए प्रकरण दायर किया गया था । उस पूरे मामले में अध्यक्ष विशाल हाड़ा को प्रतिवादी बनाया गया था और निर्वाचन फिर से कराने की मांग की गई थी, लेकिन 2 वर्ष तक कोर्ट का कोई निर्णय नही आया तो 2019 में अक्टूबर माह में फिर से नए निर्वाचन हो गए ऐसे में उक्त प्रकरण स्वतः ही महत्वहीन को गया था क्योंकि इस केस में 2017 के चुनाव को निरस्त करते हुए नये चुनाव कराने की मांग की गई थी ।


उलेखनीय है कि माननीय न्यायालय ने अपने आदेश में लिखा है कि 2017 के चुनाव का दो वर्षीय कार्यकाल हो चुका है इसलिए इस वाद को चलाने का कोई औचित्य नही है न कि किसी पक्ष के खिलाफ कोई निर्णय दिया है और न ही 2017 में सम्पन्न हुए चुनाव को निष्पक्ष घोषित किया गया है ।
लेकिन प्रेस क्लब के 2-3 स्वार्थी तत्व जो संस्था पर कब्ज़ा जमाये रखना चाहते है उनके द्वारा यह प्रचारित किया जा रहा है कि केस झूठा था और पत्रकारों को फर्जी बताया गया था , इस तरह यह झूठा और मिथ्या पूर्ण प्रचार है ।


इस केस को निष्प्रभावी हुए 1.5 वर्ष से अधिक समय हो चुका है ऐसे में आज पत्रकार वार्ता लेकर दुर्भावना पूर्ण तरीके से मामले में दुष्प्रचार किया गया है जिसकी सोसायटी फॉर प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्षों/संस्थापक सदस्यों व वरिष्ठ पत्रकारों द्वारा निंदा की गई है एवं जिसे सोसायटी फ़ॉर प्रेस क्लब के कुछ पदाधिकारी अपनी जीत बता रहे है जो कि हास्यास्पद है।

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