Mon. Apr 15th, 2024

लेखक – हरीश दर्शन शर्मा

मेरे दुबले पतले शरीर पर कुरता पायजामा ऐसा लगता है मानो खेतो में पक्षी भगाने के लिए काग भगोड़ा खड़ा किया हो. क्या करो पेण्ट मेरी कमर पर टिकती ही नहीं , सो नाड़े वाला पायजामा और कुरता ही पहनता हूँ | मै हूँ बिनोद , अरे वो यूट्यूब वायरल बिनोद नहीं , मै तो एक सीधा साधा सामन्य सा दिखने वाला ,अरे नहीं नहीं  सामान्य कहना शायद ज़्यादा हो जायेगा, मेरे लुक्स के बारे में आप खुद ही फैसला करे तो ठीक है, मेरा रंग गहरा सावला है, अब काला तो नहीं कह सकता पर काले से थोड़ा सा गोरा,  कद लगभग ५  फ़ीट होगा, और शरीर दुबला पतला। अब मै आता हु अपनी कहानी पर – हुआ यूँ की मै हो गया था ३२ साल का और मेरी शादी के लिए मेरे माता पिता खासे परेशान थे, शादी के लिए जो भी ज़रूरी अहर्ताएं थी उनमे से एक भी मेरे पास नहीं थी, मसलन न तो मैं दिखने में ठीक, न मेरी कदकाठी ठीक, न मैं १०वी के आगे स्कूल गया।,  न मेरे पास कोई ढंग का काम धंधा,  मेरा घर भी गांव में था |  

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एक सुबह मेरी मां आंगन में काम कर रही थी, तब पिताजी हाथ में मिठाई का डिब्बा ले  कर आये और ख़ुशी खुशी ख़ुशी माँ  को कहने लगे – अब ये काम वाम छोड़ दे , बहु आ रही है तेरी | मै रिश्ता पक्का कर आया हु | मेरी माँ आश्चर्य से देखते हुए बोली – आप तो शहर अपने काम से गए थे | ये रिश्ता ?, और अपने बेटे से पूछा ? उसे लड़की पसंद भी है या नहीं ? पिता ने कहा अरे उससे क्या पूछना , उसके ख्वाबो से भी कई ज़्यादा अच्छी दुल्हन लाऊंगा तू चिंता मत कर | मै ये सब ऊपर वाले कमरे से सुन रहा था | सोचते सोचते मन में लड्डू फूटने लगे, अरे मेरे ख्वाबो से भी अच्छी,  आखिर पिताजी ने क्या जादू किया जो मेरे यानी लड़का और लड़की के बिना देखे शादी भी पक्की कर आ गए | भला आजकल के ज़माने में ऐसा कैसे हो सकता है ? मै जब अपने ख्यालो से बाहर आया पिताजी और माताजी के ज़ोर और से हसने की आवाज़ आने लगी थी | शायद पिताजी ने मेरी माँ को मेरे रिश्ते के सम्बन्ध में कुछ राज बताया था | मै सोच में पड़ गया आखिर क्या लफड़ा है | पिताजी ने मुझे आवाज़ लगाई और मुझे बधाई देते हुए मेरे मुँह में लड्डू ढूस दिया | मै अपने पिताजी से बहुत डरता था तो लड्डू खा कर रह गया |  कुछ ग्रहो का चक्कर बता कर लड़की शर्त रखी थी कि लड़का शादी के बाद ही लड़की को देखे | मेरे पिताजी को भी डर था कि इतनी सूंदर लड़की जब मुझे देखेगी तो कही शादी से  इंकार न कर दे |  इसलिए वो भी कह आये थे आये थे शादी पहले न लड़का लड़की को देखेगा और न लड़की लड़के को | मेरे पिताजी और माताजी तो लड़की देख ही चुके थे और उसके रूप सौर्दय की तारीफ कर मुझे राजी कर लिया था  | 

     एक छोटे से समारोह में ब्याह हो गया , लड़की वालो की एक और शर्त थी की ब्याह बहुत ही साधारण होना चाहिए | और ऊपर से अब ये कोरोना महामारी ने शादी ब्याह के समारोह का रंग रूप ही बदल कर रख दिया था | लड़की वालो को तो मनो मुँह मांगी मुराद मिल गई हो , सो मेरे ब्याह में मेरे परिवार से मेरे मातापिता और लड़की के परिवार से एक उसका बड़ा भाई और माता पिता शामिल थे | एक पंडित था और हो गया ब्याह | लड़की वालो की शर्त के अनुसार मैंने अब तक लड़की की मुँह तक नहीं देखा था | 

     एक किराये की टैक्सी बनी मेरी दुलहन की डोली में बैठ हम  सभी घर आये | मेरी दुलहन ने घूँघट से अपना पूरा चेहरा ढका हुआ था | घर पहुंचते पहुंचते शाम गुज़र चुकी थी | और अब मेरी पहली रात की बारी थी, जब मैं पहली बार अपनी दुल्हन का चेहरा देख सकूंगा | मुझे मेरी माँ ने दोष का ग्लास पकड़ाया था मेरी दुल्हन ऊपर मेरे कमरे में मेरा इंतज़ार कर रही थी | मै दोष का ग्लास हाथ में पकडे ही ऊपर अपने कमरे में आया दरवाज़े की कुण्डी अंदर से बंद की और पलंग पर बैठी अपनी दुल्हन की और जाने लगा | सुर्ख लाल लहंगे से उसके गोरे गोरे पैरो झांक रहे थे जिन पर मेहदी की नक्काशी देख मेरा तो मन मुँह को आने लगा | मुझे डर भी लग रहा था पर अपने डर को काबू कर मै  उसके पलंग पर उसके पास बैठने लगा | पर अचानक वो ठिठक गई और पलंग के एक कोने की और सरक गई | मैं दूध का ग्लास पास की मेज़ पर रखने के बहाने उसके करीब सरक गया | और कापते हाथों से उसका घूँघट उठाने लगा जिसका उसने कोई विरोध नहीं किया | जैसे जैसे घुघट से उसका चेहरा अनावरित हो रहा था मेरी आंके फ़ैल रही थी | इतनी गोरी , गुलाब की पंखडियो के जैसे होंठ , तीखे नाक नक्श, ऐसी लग रही थी जैसे किसी फिल्म की हीरोइन हो |  मेरे दिल की धड़कन मुझे मेरे कानों तक सुनाई दे रही थी | वो नज़रे झुकाये बैठी थी उसने जैसे ही नज़रे उठा कर मेरी और देखा , मेरी भोंडी सी शक्ल देख कर उसके दोनों आँखों से आंसू बहने लगे | फिर उसने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी | मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था मैं क्या करू |मै  एकदम से पलंग से खड़ा हो गया और मैंने उससे कहा – देखिये आप रोइये मत , आप जो कहेंगी मै करने को तैयार हूँ | मै आपके साथ कुछ ज़बरदस्ती नहीं करूँगा | प्लीज आप रोइये मत | मेरा कहा सुन कर उसका रोना सुबकने में तब्दील हो गया |  मैंने कहा – देखिये आप चिंता न करे | जब तक आप नहीं कहेंगी मै  अपने पति होने का कोई हक़ आप पर नहीं जताऊँगा | आप मुझे अपना दोस्त समझिये | और मैंने दूध का ग्लास उठा उसकी और बढ़ाते हुए कहा – लीजिये दूध पी लीजिये , मै यहाँ ज़मीन पर ही सो जाऊंगा आप चिंता न करे , मुझ पर भरोसा रखे | उसने मेरे हाथ से दूधब का ग्लास ले लिया और घुट घुट पीने लगी | मैंने अपना बिस्तर पलंग से थोड़ी दूरी पर लगा लिया था | उसने कहा – देखिये आप अच्छे इंसान है , पर क्या मेरे पिता ने आपको देखा नहीं था ?  मैंने कहा – नहीं , पर आप चिंता न करे , आप जैसी खूबसूरत पत्नी का मै हक़दार नहीं, मै अपनी औकात जानता हूँ | अगर आप कहे तो मैं कल सुबह ही आपको आपके घर छोड़ दूंगा | बस आज की रात आप मुझ पर भरोसा कर ले | और निश्चिन्त हो कर सो जाये | उसने कहा – और सुबह आपके पिताजी को क्या कहेंगे ? मैंने कहा – जो भी हो , ज़ायदा से ज़ायदा नुझे दो थपड ही मरेंगे मै  सह लूँगा | उसने कहा मैं भी आपकी परिस्थियाँ समझती हु आप चिंता न करे कल सुबह जाने को नहीं कहूँगी | पर मुझे थोड़ा वक्त तो कागेगा ही | मेरे मन में लड्डू फूटा मैंने सोचा शायद मेरा नसीब ज़ोर मार रहा है | मैंने कहा आप जितना चाहे वक्त ले , जब तक आप नहीं कहेंगी मै  ज़मीन पर ही सोऊंगा |  उस रात की बातचीत से कुछ बाते तय हुई और मै मन ही मन अपनी किस्मत पर खुश रहा था | की चाहे देर से ही सही मुझे इतनी सुंदर और समझदार पत्नी मिली है |  अगली सुबह मेरी पत्नी ने नाहा धो कर मेरे पिताजी और माताजी के पैर छुए और माँ के कामो में हाथ बटाने लगी | 

     बस फिर उसके बाद मै और पिताजी अपने अपने काम पर जाते | और माँ और मेरी पत्नी घर सँभालते लगभग एक महीने में ही पेरी पत्नी ने पूरा घर संभाल लिया था | माँ को तो वो कुछ करने ही नही देति |माँ अक्सर कहती बहुत अच्छे कर्म किये होंगे मैंने पिछले जन्म में जो ऐसी सुन्दर और सुशील बहु मिली | पिताजी भी माँ की हाँ में हाँ मिलते और खुद को क्रेडिट देने से न चूकते | बोलते – मैं ही ढूंढ कर लाया था इसे | मेरी पत्नी भी कोने में खड़ी मुस्करा भर देती |  मै उन्हें सुन कर मन ही मन सोचता माँ और पिताजी को तो बहु मिल गई पर मुझे पत्नी पता नहीं कब मिलेगी | 

  फिर एक दिन जब मै  अपने काम से घर आया तो माँ दरवाज़े पर बैठी रो रही थी | मुझे देखते ही मेरे पास आई और मुझे लिप्त कर रोने लगी | मै घबरा गया और मैंने एक साथ कई सवाल पूछ डाले | माँ किया हुआ ? पिताजी आ गए ? कहा है ?  माँ को मैं सहारा दे कर घर के अंदर लाया था | ऊपर वाले कमरे का दरवाज़ा खुजला था पर घर में पिताजी को न देख कर मेरी चिंता बढ़ने लगी थी |  किसी तरह माँ को चुप करा ही रहा था की पिताजी ने घर में प्रवेश किया वे बहुत बेहाल थे , उनका रंग उड़ा हुआ था , बाल बिखरे थे | चेहरा ऐसे उतरा हुआ था जैसे किसी की मौत हो गई हो | उनके पीछे पीछे दो पुलिस वाले भी आये थे पुलिस वाले घर की तलाशी लेने लगे मुझे खुश समझ नहीं आ रहा था हो क्या रहा है | मै  ऊपर वाले कमरे की और लगभग भागते हुए गया और जैसे ही में कमरे में दाखिल हुआ मेरे होश उड़ गए , मै वही के वही जम सा गया था – पूरा कमरा टुटरत बितर बिखरा हुआ था , मेरी अलवरी खुली पड़ी थी जिसमे से सभी गहने नगदी गायब थे | नीचे पिताजी के कमरे का भी यही हाल था अब मुझे सम कुछ समझ आने लगा था | वो दुल्हन नहीं थी कोई ठगो का गिरोह था | जिसने मेरे पिताजी से पहले मेरी शादी अपनी बेटी से करने के नाम पर पैसे लिए और शादी के बाद पूरा घर साफ कर फरार हो गए | मेरे पिताजी जी ने पुलिस ने काफी तलाश की पर वे कही नहीं मिले | और मैं रह गया कुवांरा पति बन कर | 

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